जीएसवीएम और सीएसए के हालिया अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसके अनुसार, कीटनाशक के बढ़ते इस्तेमाल से डायबिटीज से लेकर कैंसर जैसे रोग हो रहे हैं। यही नहीं, इसका असर डीएनए पर भी पड़ रहा है। कानपुर देहात और लखीमपुर के 200 किसानों के डीएनए में हानिकारक असर दिखा है।
पैदावार बढ़ाने के लिए कीटनाशकों के भारी उपयोग के चलते खाद्यान्न व फलों के माध्यम से लोगों के शरीर में खतरनाक रसायन पहुंच रहे हैं। इससे शरीर की अंदरूनी संरचना में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इससे डायबिटीज, हाइपरटेंशन, तंत्रिका प्रणाली के विकारों से लेकर कैंसर जैसी गैर संचारी बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल से इंसान में आनुवांशिक बदलाव भी आ रहे हैं, जो हमारे क्रमिक विकास में बाधक हैं।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज (जीएसवीएम) और चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय (सीएसए) का हालिया अध्ययन इसी ओर इशारा करता है। मेडिकल कॉलेज के बाॅयोकेमिस्ट्री विभाग और सीएसए के कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम ने लखीमपुर और कानपुर देहात के 10 गांवों में क्रमश: फसलों और उन्हें उगाने वाले दर्जनों किसानों पर कीटनाशकों के असर का अध्ययन किया।
जीएसवीएम बॉयोकेमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. आनंद नारायण सिंह ने बताया कि प्रभाव को आंकने के लिए जब किसानों के स्वास्थ्य को जांचा गया तो करीब 200 किसानों के डीएनए में मिथाइलेशन के प्रमाण मिले। यह प्रक्रिया वैसे तो सामान्य है, पर अनियंत्रित हो जाए तो खतरनाक साबित हो सकती है। इससे जींस पर प्रतिकूल असर पड़ता है और उपरोक्त बीमारियां घेर सकती हैं।
2019 में शुरू हुआ था अध्ययन, सरकार को भेजी जाएगी रिपोर्ट
डॉ. आनंद समेत अन्य विशेषज्ञ खुलकर कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन इन किसानों के मामले में नतीजे चिंता में डालने वाले प्रतीत हो रहे हैं। 2019 में शुरू हुए इस अध्ययन की रिपोर्ट सरकार को भेजी जाएगी। सीएसए के कृषि वैज्ञानिक सुहैल अहमद के अनुसार, किसान फसलों में बिना किसी बीमारी के लक्षण के ही कीटनाशकों का भारी इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ जो स्वयं इनका प्रयोग नहीं करते, वे भी चपेट में आ रहे हैं। दरअसल, उनके आसपास के खेतों में इनका इस्तेमाल हो रहा है और छिड़काव के वक्त हवा-पानी के रास्ते ये इनके खेतों और श्वांस तत्र के जरिये शरीर के भीतर भी पहुंच रहे हैं।
औद्योगिक अपशिष्ट के रूप में प्रकृति को कर रहे हैं दूषित
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय काला कहते हैं कि गांव के मरीजों में कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। हालांकि, वे इसके लिए कीटनाशकों के उपयोग के साथ खाद्यान्नों में भारी धातुओं के घुलमिल जाने को भी बड़ा कारण बताते हैं, जो औद्योगिक अपशिष्ट के रूप में प्रकृति को दूषित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि गॉल ब्लैडर कैंसर के बढ़ते मामलों की वजह जानने के लिए इस नजरिये से एक अलग अध्ययन किया जा रहा है।
जानिए क्या है मिथाइलेशन
शरीर में होने वाला एक केमिकल रिएक्शन जिसमें मिथाइल समूह के अणु डीएनए, प्रोटीन या अन्य अणुओं में जुड़ जाते हैं। इससे शरीर के भीतर अणुओं का मूल कामकाज प्रभावित हो सकता है। मनुष्य के जीन के डीएनए सीक्वेंस के मिथाइलेशन से जीन में प्रोटीन का उत्पादन बाधित हो सकता है और विकास की गति पर असर पड़ सकता है।
हो सकती हैं यह बीमारियां या विकार
डायबिटीज, हाइपरटेंशन, किडनी रोग, पार्किंसंस, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे तंत्रिका प्रणाली के विकार, बच्चों का मंदबुदि्ध होना, शरीर विकसित न हो पाना जैसे विकार, कैंसर आदि।