इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्राम विकास, गरीबी उन्मूलन और रोजगार गारंटी की योजना में मनरेगा के तहत अमृत सरोवर निर्माण में अधिकारियों के भ्रष्टाचार की जांच में देरी पर चिंता जताई है। कहा है कि अधिकारियों की जांच में देरी होने से विभागीय कार्य प्रभावित होता है और साक्ष्य नष्ट होने के कारण जवाबदेही तय न हो पाने से लोगों का व्यवस्था से विश्वास उठता है। साथ ही पीड़ित के साथ अन्याय होता है और सरकारी खर्च बढ़ता है। तकनीकी खामियों का लाभ भ्रष्ट अधिकारी उठाते हैं और अपराध की पुनरावृत्ति होती है।
कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच की समय सीमा तय न होने से कानून का शासन कमजोर होता है। कोर्ट ने राज्य सरकार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी गठित करने का निर्देश दिया है और सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की जांच की गाइडलाइंस तैयार कर महानिबंधक के समक्ष पेश करने को भी कहा है। कोर्ट ने कमेटी को अधिकतम छह माह में अपनी रिपोर्ट पेश करने का समय दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति वीके बिड़ला तथा न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने जौनपुर के प्यारेपुर की ग्राम प्रधान सहित अन्य अधिकारियों की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मनीष कुमार सिंह, पुष्पा निषाद, विनोद कुमार सरोज व जवाहरलाल ने अमृत सरोवर निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायत के साथ सुजानगंज थाने में दर्ज एफआईआर को रद करने व गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी। तय की जाए दोषी अधिकारियों की जवाबदेही
कोर्ट ने कहा कि जिला, जोन व राज्य स्तर पर दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए। साथ ही प्रदेश के सभी पुलिस कमिश्नरों/अधीक्षकों को सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की दर्ज एफआईआर की विवेचना के ब्योरे के साथ सूची तैयार करने का भी निर्देश दिया है। कहा है कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ निष्पक्ष त्वरित विवेचना में विफल पुलिस अधिकारियों को कुछ समय के लिए थाना या पुलिस चौकी इंचार्ज बनने से रोका जाए।
कोर्ट ने कहा यदि आरोप साबित नहीं होता तो पुलिस कमिश्नर/अधीक्षक अपनी संतुष्टि दर्ज कर फाइनल रिपोर्ट दाखिल करें। कोर्ट ने याचियों के खिलाफ विवेचना शीघ्र पूरी करने का निर्देश दिया है। मामले में 21 अगस्त 2023 को बीडीओ सुजानगंज ने प्रोजेक्ट डायरेक्टर की तीन सदस्यीय कमेटी की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर एफआईआर दर्ज कराई।
जौनपुर के एक केस के मामले में कोर्ट ने की सुनवाई
रिपोर्ट में अधिकारियों की मिलीभगत से अमृत सरोवर निर्माण में 15 लाख 57 हजार 790 रुपये के घपले के आरोप की पुष्टि की गई। इस पर दर्ज प्राथमिकी की विवेचना में पुलिस की ओर से देरी की जा रही है। घपले में ग्राम सचिव, ग्राम प्रधान, सहायक प्रोग्राम अधिकारी, लेखाकार, रोजगार सेवक लिप्त पाए गए हैं। याचियों का कहना था कि प्रारंभिक जांच 24 घंटे में पूरी कर ली गई। साथ ही कारण बताओ नोटिस भी नहीं दिया गया।
कमेटी की रिपोर्ट पर एक सदस्य के हस्ताक्षर नहीं हैं। याचियों के खिलाफ कोई केस नहीं बनता और उन्हें फंसाया गया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाले से कहा कि अनुच्छेद 21 नागरिकों को स्पीडी ट्रायल का अधिकार देता है। इसमें निष्पक्ष और समयबद्ध विवेचना भी शामिल है। इसलिए सरकारी विभागों के खिलाफ आपराधिक मामलों खासतौर पर भ्रष्टाचार की नियत समय के भीतर जांच पूरी करने की गाइडलान तैयार की जाए।