नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में दोषी और उम्र कैद की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन की रिहाई का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने दोषी की दया याचिका के निपटारे में अधिक समय लिया.
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पेरारिवलन ने कहा था कि तमिलनाडु सरकार ने उसे रिहा करने का फैसला लिया, लेकिन राज्यपाल ने फ़ाइल को काफी समय तक अपने पास रखने के बाद राष्ट्रपति को भेज दिया. यह संविधान विरुद्ध है.
इससे पहले 11 मई को हुई सुनवाई में केंद्र ने एजी पेरारिवलन की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजने के तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसले का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया था.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज ने जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए एस बोपन्न की पीठ को बताया था कि केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए शख्स की सजा में छूट, माफी और दया याचिका के संबंध में याचिका पर केवल राष्ट्रपति ही फैसला कर सकते हैं.
बेंच ने केंद्र से सवाल किया था कि अगर इस दलील को स्वीकार कर लिया जाता है तो राज्यपालों की ओर से दी गई अब तक की छूट अमान्य हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर राज्यपाल पेरारिवलन के मुद्दे पर राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश को मानने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें फाइल को पुनर्विचार के लिए वापस मंत्रिमंडल में भेज देना चाहिए था.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दो घंटे तक सुनवाई की और पेरारिवलन की ओर से दायर याचिका पर एएसजी, तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. लिखित दलीलें दो दिनों में दाखिल करने को कहा गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल पेरारिवलन की रिहाई पर राज्य मंत्रिमंडल के फैसले से बंधे हैं, और राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने की उनकी कार्रवाई को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वह संविधान के खिलाफ किसी चीज से आंखें बंद नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने नौ मार्च को पेरारिवलन को जमानत दे दी थी.
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अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें से एक में पेरारिवलन ने मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी (एमडीएमए) जांच पूरी होने तक मामले में अपनी उम्रकैद की सजा को स्थगित करने का अनुरोध किया था.
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