नोएडा, रविंद्र सिंह। भारतीय जनता पार्टी के घोषणा-पत्र पर विरोधी दलों सहित उत्तर प्रदेश की जनता की भी नज़र बनी हुई थी हालांकि भाजपा ने इसे घोषणा-पत्र ना कहते हुए ‘लोक कल्याण संकल्प-पत्र 2022’ कहना उचित समझा। इसलिए समिति के सदस्यों से सलाह लेने के पश्चात, जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह ने बताया, घोषणा-पत्र को संकल्प पत्र नाम दिया गया। अब सवाल ये है कि प्रदेश की जनता इस संकल्प पत्र को किस नजरिये से देखेगी?
2014 के बाद कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों ने भाजपा पर उनकी योजनाएं हैक कर नाम बदलकर योजनाओं को दोबारा लागू करने के आरोप लगाए थे। अब संकल्प पत्र भी एक दूसरे से प्रभावित दिख रहे हैं। आपको बता दें कि भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में कांग्रेस की कई योजनाओं के नाम बदल डाले थे, जिनमें ‘राजीव गांधी शिक्षा संकुल’ का नाम बदलकर ‘डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा संकुल’ कर दिया गया था। इसके अलावा ‘राजीव गांधी सेवा केंद्रों’ का नाम ‘अटल सेवा केंद्र’ किया गया। योजनाओं की तरह इस बार संकल्प-पत्र में विरोधी दलों की योजनाओं को भी खासी तवज्जो दी गई है हालांकि विरोधी दलों को हर मामले में भाजपा आड़े हाथों लेती है लेकिन अगर योजनाएं हों तो फिर शायद खास परहेज नहीं होता।
किसकी फ्री स्कूटी लेगी जनता?
कुछ ही समय पहले कांग्रेस की साख बचाने में जुटीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने एक ट्वीट कर लड़कियों को स्कूटी देने की बात कही थी, शायद यह बात भारतीय जनता पार्टी को जंच गई और उनके संकल्प पत्र में स्कूटी मुफ्त देने की बात कही गई है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में विद्यार्थियों को मुफ्त दिये जाने वाले लैपटॉप से सीख लेते हुए भाजपा ने टैबलेट बांटने का संकल्प लिया। ठीक उसी तरह जब सपा और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की खबरें सियासत को गर्मा रही थीं जिसमें 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात उठी थी वह बात भी भाजपा के मेनीफेस्टों में लिखी हुई है। अब जब विपक्षी दलों ने काफी कुछ मुफ्त देने की बात कही है तो भाजपा की भी मजबूरी बन गई थी कि वह भी इस तरह की मुफ्त प्रणाली को जारी रखे।
खैर जो भी हो समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच का मुकाबला काफी रोचक भी होता जा रहा है। अखिलेश यादव अपने विभिन्न चैनलों को दिए गए साक्षात्कार में कई बार कह चुके हैं कि भाजपा को हराने के लिए अगर उन्हे दो कदम पीछे भी हटना पड़ा तो हटेंगे और विभिन्न दलों के साथ किए गए गठबंधन में ऐसा नजर भी आ रहा है। सपा ने रालोद, सुभासपा, प्रसपा, अपना दल, महान दल जैसे दलों से हाथ मिलाया और भाजपा के सामने चुनौती पेश की यही नहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी अखिलेश यादव को समर्थन देने की बात कह चुकी हैं वहीं तृणमूल कांग्रेस से ममता बनर्जी चुनाव में स्टार प्रचारक के तौर पर सपा खेमे के लिए वोट मांगती नजर आएंगी। ऐसे में भाजपा को लोक-लुभावन संकल्प पत्र देना जरूरी था।
किसान और महिलाओं की सुरक्षा
किसानों का एक वर्ष तक चला आंदोलन, 700 किसानों की मौत और आंदोलन के समय राज्य गृहमंत्री के बेटे के जरिए किसानों को कुचल कर मार देने जैसी घटनाओं ने किसानों के गुस्से को ज्वालामुखी की तरह धधकने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद गृहराज्य मंत्री टेनी का इस्तीफा ना लिया जाना किसानों को आज भी चुभ रहा है तो क्या इस संकल्प-पत्र में किए गए वादों से किसान पिछली सारी बातों को भूल जाएगा? यही नहीं प्रधानमंत्री लखनऊ तक अपने दौरे पर पहुंचे और किसानों को लेकर एक शब्द तक नहीं बोलने को भी क्या किसान भुला देंगे? ऐसी ही कई गंभीर बातों का जवाब अबतक किसानों को नहीं मिला है इसलिए यह संकल्प-पत्र किसानों को कितना प्रभावित कर पाएगा इसका जवाब अभी समय के साथ ही मिल सकेगा। रही बात मुफ्त बिजली की तो अगर किसानों को अब मुफ्त बिजली दी जा सकती है तो अबतक महंगी बिजली क्यों दी गई? विपक्षी दल इन सवालों के जरिए निशाना साध सकते हैं।
अब जनता इनके झांसे में नहीं आएगी – बीएसपी
देर से ही सही बसपा धीरे-धीरे चुनावी रंण में रंगती नजर आ रही हैं। भाजपा के संकल्प-पत्र को लेकर बसपा की ट्वीट सियासत की तपिश को बढ़ा रहा है।
हालांकि भाजपा अपने संकल्प-पत्र से संतुष्ट है। देखना यह होगा कि किसान, युवा बेरोजगार और महिलाएं इस संकल्प-पत्र पर कितना भरोसा कर पाती हैं। चुनाव अब सिर पर हैं, सभी दलों से ज्यादा भाजपा की चिंता बढ़ना लाज़मी है क्योंकि उसे इस बात का अच्छी तरह अनुमान है कि जब समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में किए गए कामों को जनता दरकिनार कर सकती है तो फिर भाजपा को कैसे बख्शेगी। फिलहाल संकल्प-पत्र में दूरदर्शिता है लेकिन इस बात को जनता को भाजपा कैसे समझा पाती है इसका इंतजार है।
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