हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है. प्रत्येक माह में दो प्रदोष पड़ते हैं. पहला प्रदोष शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में पड़ता है. सभी प्रदोष व्रत दिन के अनुसार वर्णित किये गये हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रदोष व्रत पर विधि-विधान से भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
प्रदोष व्रत अलग-अलग योग बनाता है
ज्योतिषाचार्य पं. प्रफुल्ल भट्ट के अनुसार इस तिथि पर कुछ विशेष उपाय भी किए जा सकते हैं। वार के साथ मिलकर प्रदोष व्रत अलग-अलग योग बनाता है, जैसे शुक्र को प्रदोष तिथि होने पर शुक्र प्रदोष। आगे जानिए शुक्र प्रदोष के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व…
शुक्र प्रदोष के शुभ मुहूर्त
पौष, कृष्ण त्रयोदशी प्रारम्भ: 31 दिसंबर 2021, प्रात: 10:39 बजे से
पौष, कृष्ण त्रयोदशी समाप्त: 1 जनवरी 2022, प्रातः 07:17 तक
प्रदोष काल- 31 दिसंबर 2021, सायं 05:35 से रात 08:19 मिनट तक
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होने के बाद पूजा घर में जल का छिड़काव करें।
- इसके उपरांत अपने हाथ में धन, पुष्प, आदि रखकर विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने का संकल्प लें। प्रदोष वाले दिन भगवान शिव के मंत्र जप आदि करें।
- इसके बाद सूर्यास्त के समय एक बार पुनः स्नान करें। स्नान के बाद भगवान शिव का षोडशोपचार तरीके से पूजन करें।
- प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें। पूजा के बाद प्रसाद वितरित करने के बाद स्वयं प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
शुक्र प्रदोष का महत्व
साल का अंतिम प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। मान्यता है कि शुक्र प्रदोष व्रत को करने पर व्यक्ति को सौभाग्यशाली होने का वरदान प्राप्त होता है। उसे जीवन में किसी चीज का अभाव नहीं रहता है और उसके परिवार में हमेशा सुख और समृद्धि कायम रहती है। प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि, आजीवन आरोग्यता और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है, कार्य विशेष में सफलता प्राप्त होती है।
पापों से मिलती है मुक्ति
मान्यता है कि, सच्ची आस्था और विधि-विधान के साथ व्रत एवं शिवजी के साथ माता पार्वती की पूजा करने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है, जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है और देह त्यागने के बाद जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत संतान, सुख-समृद्धि, पाप से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार आइये जानें इस नववर्ष 2022 में कब-कब प्रदोष-व्रत पड़ रहे हैं।
साल 2022 में पड़ने वाले प्रदोष व्रत
15 जनवरी (शनिवार)- शनि प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
13 फरवरी (रविवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष )
28 फरवरी (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष )
15 मार्च (मंगलवार)- भौम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
29 मार्च (मंगलवार)- भौम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
14 अप्रैल (गुरुवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
28 अप्रैल (गुरुवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
13 मई (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
27 मई (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
12 जून (रविवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
26 जून (रविवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
11 जुलाई (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
25 जुलाई (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
09 अगस्त (मंगलवार)- भौम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
24 अगस्त (बुधवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
08 सितंबर (गुरुवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
23 सितंबर (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
07 अक्तूबर (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
22 अक्तूबर (शनिवार)- शनि प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
05 नवंबर (शनिवार)- शनि प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
21 नवंबर (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
05 दिसंबर (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
21 दिसंबर (बुधवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
श्रद्धालु अपनी शक्ति एवं सामर्थ्यनुसार कर सकते हैं व्रत
मान्यता है कि, यह व्रत एवं पूजा नियम एवं विधि-विधान से न की जाए तो व्रत का पुण्य-फल नहीं मिलता। इसलिए प्रदोष व्रत करने से पहले इसके नियमों और पूजा-विधि का ज्ञान होना जरूरी है। स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत की दो विधियों का उल्लेख है। एक में 24 घंटे बिना खाएं व्रत करना होता है, दूसरे में फलहार की छूट होती है लेकिन सूर्यास्त के बाद। श्रद्धालु अपनी शक्ति एवं सामर्थ्यनुसार व्रत कर सकते हैं, लेकिन एक ही नियम हर व्रत में रखना होता है। शाम को शिवजी की पूजा के बाद उपवास तोड़ते हैं.