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चार साल की जुदाई के बाद लौटा बेटा, परिजनों की आंखें नम सूरजपाल की वापसी की भावुक दास्तान

ख़बर उन्नाव से है जहां कभी-कभी ज़िंदगी ऐसी कहानियाँ लिख देती है, जिन पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है। सदर कोतवाली क्षेत्र के अक्रमपुर के सुलतानखेड़ा वार्ड नंबर 48 का सूरजपाल (45) भी ऐसी ही कहानी का हिस्सा बन गया। मानसिक विक्षिप्तता की वजह से पांच साल पहले घर से निकला यह व्यक्ति कब सीमाएँ लांघकर पाकिस्तान जा पहुँचा और जेल की सलाखों के पीछे बंद हो गया, किसी को अंदाज़ा तक न था। लेकिन अब उसकी घर वापसी ने न केवल परिवार, बल्कि पूरे मोहल्ले को भावुक कर दिया है।

बता दे कि सूरजपाल का जीवन बीते कई वर्षों से मानसिक बीमारी की गिरफ्त में रहा है। अक्सर वह घर से निकल जाता और एक-दो दिन बाद लौट आता। परिजनों को इसकी आदत-सी हो गई थी। लेकिन वर्ष 2020 की एक शाम वह गया तो फिर लौटा ही नहीं। घरवाले पहले तो यही समझते रहे कि वह कहीं भटक गया होगा और लौट आएगा, लेकिन जैसे-जैसे दिन महीने में और महीने साल में बदलते गए, उनकी उम्मीदें भी टूटती गईं। पत्नी सुरजा देवी और रिश्तेदारों ने परिचितों और यहां तक कि आसपास के जिलों में भी तलाश की। थानों में भी जानकारी दी गई। लेकिन हर जगह से निराशा ही हाथ लगी।

सूरजपाल के लापता होने के महज़ कुछ ही महीने बाद नवंबर 2020 में उसके पिता उमाशंकर का निधन हो गया। घर की जिम्मेदारी पूरी तरह पत्नी सुरजा देवी और बेटे पिंटू पर आ गई। आर्थिक तंगी और मानसिक पीड़ा ने परिवार को और हताश कर दिया। सुरजा देवी ने मान लिया कि अब उनका पति शायद कभी वापस नहीं आएगा। लेकिन दिल के किसी कोने में उम्मीद की एक लौ जलती रही। करीब तीन साल की खामोशी के बाद अचानक 1 जून 2024 को पाकिस्तान दूतावास ने भारतीय उच्चायोग से संपर्क साधा। पत्र में लिखा था कि बिना पासपोर्ट और अनुमति के सीमा पार करने के आरोप में एक भारतीय नागरिक सूरजपाल को लाहौर जेल में बंद किया गया है। दूतावास ने उसकी पहचान की पुष्टि करने और पारिवारिक जानकारी उपलब्ध कराने को कहा। यह खबर सुनकर परिजन हैरान रह गए। जिसे वे मृत समझने लगे थे, वह पड़ोसी मुल्क की जेल में जीवित था। पुलिस और राजस्व विभाग की जांच ने भी पुष्टि की कि यह वही सूरजपाल है जो मानसिक विक्षिप्तता से ग्रसित था और कई बार घर से लापता हो चुका था। इस कहानी का सबसे दर्दनाक पहलू है पत्नी सुरजा देवी का संघर्ष। जांच में सामने आया कि वह दो साल पहले खुद वाघा बॉर्डर तक गई थीं। उम्मीद थी कि कहीं न कहीं अपने पति का सुराग मिलेगा। लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी। मजबूर और बेसहारा सुरजा देवी घर लौट आईं। उनका कहना है – “मैंने हर मंदिर में माथा टेका, हर जगह तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। लोग ताने भी मारते थे कि अब लौटेगा नहीं। पर आज लगता है भगवान ने मेरी सुन ली।” लंबी कानूनी और राजनयिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद सूरजपाल को रिहा कर दिया गया। बुधवार की शाम वह अचानक लोक नगर क्रॉसिंग के पास दिखाई दिया। चचेरे भाइयों ने पहचानकर घर पहुँचाया। घर में कदम रखते ही पत्नी और बेटे की आंखों से आंसू छलक पड़े। चार साल की जुदाई के बाद यह मिलन किसी सपने से कम नहीं था। सूरजपाल फिलहाल मानसिक रूप से पूरी तरह स्थिर नहीं है। बातचीत में वह बार-बार भटक जाता है। उसने इतना बताया कि वह ट्रेन से चंडीगढ़ तक पहुँचा था और पता ही नहीं चला कि कब पाकिस्तान की सीमा में चला गया। इस पूरे मामले में प्रशासन और भारतीय दूतावास की भूमिका बेहद अहम रही। पाकिस्तान से आए पत्र के बाद तेजी से पड़ताल शुरू हुई। परिवार की स्थिति और सूरजपाल की बीमारी के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। दोनों देशों के बीच हुई प्रक्रिया के बाद आखिरकार सूरजपाल की वापसी संभव हो सकी। जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा “ऐसे मामले दुर्लभ होते हैं। अक्सर मानसिक रोगी या गरीब लोग अनजाने में सीमा पार कर जाते हैं। दोनों देशों के बीच मानवीय आधार पर सहयोग होना ज़रूरी है।” सूरजपाल की वापसी की खबर से मोहल्ले में खुशी की लहर है। पड़ोसी कहते हैं कि यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। मोहल्ले के बुजुर्ग रामप्रकाश ने कहा “भगवान की मर्जी के बिना यह संभव नहीं था। चार साल बाद किसी का यूं लौट आना बहुत बड़ी बात है।” सूरजपाल की पत्नी और बेटे की अब केवल एक ही ख्वाहिश है कि उसका मानसिक संतुलन जल्द ठीक हो जाए। यही बहुत बड़ी खुशी है। अब हम उनका इलाज कराएंगे और उन्हें सामान्य जिंदगी दिलाने की कोशिश करेंगे।”

बाइट – सूरज पाल
बाइट – सुरजा देवी, पत्नी

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