सिब्बल ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के उस कथित बयान पर भी निशाना साधा है। जिसमें उन्होंने कहा था कि खालिद के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में कम से कम सात बार सुनवाई स्थगित करने की मांग की थी। सिब्बल ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में केवल दो बार स्थगन मांगा गया था।
उमर खालिद और शरजील इमाम को हाईकोर्ट ने नहीं दी थी जमानत
दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते मंगलवार को फरवरी 2020 के दंगों से जुड़े एक यूएपीए मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम समेत 10 आरोपियों को जमानत देने से साफ इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और शालिंदर कौर की खंडपीठ ने नौ आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कीं, जबकि न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने तसलीम अहमद की याचिका खारिज की। दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।
कोर्ट ने नौ जुलाई को आदेश सुरक्षित रखने के बाद मंगलवार को यह फैसला सुनाया। विस्तृत आदेश का इंतजार है। आरोपियों को 2020 से जेल में रखा गया है। सभी आरोपियों ने निचली अदालत से जमानत याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद हाईकोर्ट का रुख किया था।
अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि यह पूर्व-नियोजित और सुविचारित साजिश का मामला है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि यह भारत को वैश्विक स्तर पर बदनाम करने की साजिश थी और केवल लंबी अवधि तक जेल में रहना जमानत का आधार नहीं हो सकता।
उमर खालिद, शरजील इमाम, मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की जमानत याचिकाएं हाईकोर्ट में 2022 से लंबित थीं।