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इस्लाम में क्यों खास है शुक्रवार, जानिए क्या हैं जुमा की नमाज की फजीलत?

इस्लाम में शुक्रवार यानी जुमा को एक बहुत खास और पवित्र दिन माना गया है। यह दिन न सिर्फ इबादत के लिए अहम है, बल्कि इसे रहमतों और बरकतों का दिन भी कहा गया है। कुरआन और हदीसों में इस दिन को बड़ी फजीलत वाला बताया गया है। जुमे की नमाज को सामूहिक रूप से अदा करना एक खास इबादत है, जो न केवल रूहानी फायदों से भरपूर है, बल्कि समाजिक जुड़ाव और एकता की मिसाल भी पेश करता है।

हर धर्म में कुछ खास दिन होते हैं जो इबादत, आत्मचिंतन और समाजिक जुड़ाव के लिए होते हैं। इस्लाम में शुक्रवार (जुमा) ऐसा ही एक दिन है। यह हफ्ते का सबसे बेहतर दिन माना जाता है। इस दिन मुसलमान मस्जिदों में इकट्ठा होकर जुमे की नमाज पढ़ते हैं और अल्लाह की याद में लीन हो जाते हैं। जुमा का मतलब ‘इकट्ठा होना’ होता है । इस दिन मुसलमान दुनिया भर की मस्जिदों में इकट्ठा होकर जुमा की नमाज अदा करते हैं। यह न सिर्फ एक धार्मिक रस्म है, बल्कि ये दिन लोगों को आपस में जोड़ने, समाज के बीच भाईचारे को बढ़ाने और खुदा के करीब आने का जरिया माना जाता है।

कुरान और हदीस दोनों में इस दिन की फजीलत (महत्त्व) का साफ जिक्र है। माना जाता है कि इस दिन एक खास घड़ी होती है, जब दुआ जरूर कबूल होती है। इसके साथ ही, जुमा की नमाज पिछले हफ्ते के छोटे गुनाहों का प्रायश्चित (कफ़्फ़ारा) भी बन सकती है। आइए जानते हैं कि जुमा इतना अहम क्यों है।

जुमा क्यों है इतना ज्यादा अहम

कुरआन और हदीस में जुमा का जिक्र मिलता है। कुरआन की एक पूरी सूरह का नाम ही सूरह अल-जुमा है। इसमें साफ कहा गया है कि जब जुमा की नमाज के लिए पुकारा जाए, तो अल्लाह के जिक्र की तरफ दौड़ पड़ो और कारोबार छोड़ दो। इस आयत के अनुसार जुमे की नमाज बाकी सभी कामों से अधिक महत्वपूर्ण है।

सहीह बुखारी किताब के अनुसार जुमा का दिन एक ऐसी घड़ी है, जिसमें कोई बंदा अल्लाह से जो मांगे, उसे दिया जाता है। हदीसों में बताया गया है कि आदम (अलैहिस्सलाम) की तख्लीक यानी उनकी रचना जुमा के दिन हुई थी। उन्हें इसी दिन जन्नत में दाखिल किया गया और इसी दिन उन्हें वहां से निकाला गया। इस कारण भी यह दिन इंसान की शुरुआत और उसके इम्तिहान की याद दिलाता है।

जुमे के दिन ही आएगी कयामत!

माना जाता है कि आखिरी दिन यानी कयामत भी जुमा को आएगी। इस कारण भी यह दिन बहुत अहम और याद रखने वाला माना जाता है।

जुमा की नमाज की फजीलत

  • जो व्यक्ति सच्चे दिल से जुमा की नमाज अदा करता है, वह अपने पिछले हफ्ते के छोटे-छोटे गुनाहों से पाक हो सकता है।
  • जुमा की नमाज समाज में एकता और भाईचारा लाती है। लोग एक साथ मस्जिद में जमा होते हैं, खुतबा सुनते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं। इससे समाजिक जुड़ाव और मजबूत होता है।
  • हफ्ते भर की भागदौड़ के बाद जुमा की नमाज एक मानसिक ब्रेक जैसी होती है, जो इंसान को ताजगी देती है और आगे की जिंदगी में बेहतर सोचने की ताकत देती है।

जुमा के दिन करने चाहिए ये काम

इस दिन गुस्ल करना (साफ-सफाई से नहाना) और इत्र लगाना चाहिए। इसके साथ ही मस्जिद जाना चाहिए और वहां नमाज अदा करनी चाहिए। खुतबा ध्यान से सुनें और अल्लाह से दुआ करें। सूरह अल-कहफ़ की तिलावत करना भी अहम है।

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