सिद्धार्थनगर जनपद के विकासखंड बांसी क्षेत्र के जानियाजोत गांव में भ्रष्टाचार की एक ऐसी दास्तां सामने आई है, जो शासन की मंशा और जमीनी हकीकत के बीच की खाई को साफ़ उजागर करती है।
जुगाड़ तंत्र से बना ‘सामुदायिक शौचालय’
गांव में शासन की योजना के तहत सामुदायिक शौचालय निर्माण का निर्देश दिया गया था। इसके लिए अलग से नक्शा, डिज़ाइन और सुविधाओं की सूची तय की गई थी – जिसमें स्वतंत्र भवन, वाटर सप्लाई, सेफ्टिक टैंक और स्वच्छ उपयोग की व्यवस्था शामिल थी।
लेकिन, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। पंचायत भवन को ही आधार बनाकर ‘जुगाड़ तंत्र’ से शौचालय खड़ा कर दिया गया। सेफ्टिक टैंक से लेकर पानी की सप्लाई तक पंचायत भवन की मौजूदा व्यवस्था से जोड़ दी गई। यानी लागत बचाने का खेल हुआ, लेकिन पूरा भुगतान शासन से उठा लिया गया।
जनता की गाढ़ी कमाई पर चोट
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब नई व्यवस्था पर पैसा खर्च होना चाहिए था, तो पहले से मौजूद भवन का ही उपयोग कर सरकारी धन का गबन किया गया। नतीजा यह है कि यह शौचालय न तो पूरी तरह से मानक पर खरा उतरता है और न ही लंबे समय तक उपयोग योग्य रह सका।
आज हालत यह है कि जानियाजोत का सामुदायिक शौचालय उपयोग से बाहर पड़ा है। टूटी दीवारें, गंदगी और अव्यवस्था इसकी असलियत खुद बयान कर रही हैं।
जांच की मांग तेज़
गांव के लोगों ने सवाल उठाए हैं कि जब शासन से नक्शा और बजट साफ़-साफ़ तय था, तो पंचायत भवन का इस्तेमाल क्यों किया गया? यह सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का मामला है। ग्रामीणों ने मांग की है कि सख्त जांच कर ज़िम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदार पर कार्रवाई की जाए।
“एक टिकट में दो फिल्म” का खेल
गांव के बुज़ुर्ग व्यंग्य करते हुए कहते हैं –
“हाय रे जुगाड़, एक टिकट में दो फिल्म की कहावत यहां चरितार्थ हुई है। पैसा सरकार का, भवन पुराना और नाम नया – सामुदायिक शौचालय।”
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