किसानों को इस देश में ‘अन्नदाता’ कहा जाता है। लेकिन जब वही अन्नदाता अपनी फसल बचाने के लिए एक बोरी यूरिया खाद के लिए घंटों नहीं, बल्कि कई दिनों तक लाइन में खड़ा रहने को मजबूर हो जाए, तो सवाल उठते हैं – क्या किसानों को सिर्फ भाषणों में ही सम्मान मिलता है? ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आती है।
कुशीनगर की ये तस्वीरें सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
हाटा तहसील क्षेत्र के डुमरी स्वागीपट्टी में यूरिया खाद वितरण केंद्र पर हालात इतने खराब हैं कि सुबह से लेकर शाम तक किसान लाइन में खड़े रहते हैं, फिर भी खाली हाथ लौट जाते हैं। बूढ़े-बुजुर्ग, महिलाएं, नौजवान – हर वर्ग का किसान इस भीषण धूप में अपनी बारी का इंतजार करता दिख रहा है, लेकिन न तो पर्याप्त व्यवस्था है और न ही सुनवाई।
लंबी कतारें, थकी हारी उम्मीदें
सैकड़ों की संख्या में किसानों की लाइनें खाद केंद्र के बाहर देखने को मिल रही हैं। किसान बताते हैं कि वे चार-चार दिन से आ रहे हैं, लेकिन खाद नहीं मिल रही। एक किसान ने कहा – “सुबह 5 बजे से लाइन में हूं, लेकिन अभी तक नंबर नहीं आया, रोज़ यही हाल है।”
दूसरे किसान ने कहा – “मेरी बारी आई, तो कहा गया कि खाद खत्म हो गई। ये मज़ाक है या तंत्र की नाकामी?”
बाजार में ब्लैक, सरकारी केंद्रों पर किल्लत
जहां सरकारी दुकानों पर खाद के लिए भीड़ और हाहाकार है, वहीं बाजार में ब्लैक मार्केटिंग जोरों पर है। किसान आरोप लगा रहे हैं कि खुले बाजार में एक बोरी यूरिया, जो सरकारी रेट पर लगभग ₹266 में मिलती है, वो ₹500-₹600 तक बेची जा रही है। सवाल उठता है कि जब सरकार दावा करती है कि खाद की कोई कमी नहीं है, तो फिर यह कालाबाज़ारी कैसे हो रही है? और क्यों हो रही है?
प्रशासन की चुप्पी, किसानों की लाचारी
स्थानीय प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस इंतजाम नहीं दिख रहा है। भीड़ को कंट्रोल करने, वितरण को पारदर्शी और व्यवस्थित बनाने के कोई संकेत नहीं हैं। नोडल अधिकारी और तहसील प्रशासन भी मौन हैं। खाद की उपलब्धता पर सिर्फ आंकड़ों की बाज़ीगरी है, ज़मीनी सच इससे कोसों दूर है।
फसल की चिंता में डूबा किसान
सावन का महीना चल रहा है और खेतों में खाद की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। ऐसे में अगर किसान को समय पर खाद नहीं मिली तो फसलें सूख जाएंगी। इससे उत्पादन प्रभावित होगा, और इसका असर सीधे तौर पर देश की खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ेगा।
राजनीतिक चुप्पी भी चिंताजनक
स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे से दूरी बनाए हुए हैं। किसान लगातार मांग कर रहे हैं कि तहसील स्तर पर मोबाइल वितरण वाहन भेजे जाएं, एक दिन पहले टोकन व्यवस्था लागू की जाए, और पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराई जाए — लेकिन अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।
निष्कर्ष:
कुशीनगर के किसानों की ये तस्वीरें सिर्फ एक जिले की नहीं हैं, ये पूरे सिस्टम की नाकामी की तस्वीर हैं। जिस देश में किसान को ‘अन्नदाता’ कहा जाता है, वहां उसकी सबसे बुनियादी ज़रूरत – खाद – भी समय पर नहीं मिल रही। यह स्थिति अगर जल्द नहीं सुधरी तो इसका असर ना सिर्फ किसान की जेब और फसल पर पड़ेगा, बल्कि देश की खाद्य व्यवस्था पर भी भारी पड़ेगा।
👉 सरकार को चाहिए कि वह ब्लैक मार्केटिंग पर सख्ती से कार्रवाई करे, खाद वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाए और जरूरतमंद किसानों तक खाद समय पर पहुंचे – इसकी गारंटी सुनिश्चित करे।
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